पाठ 10_वाख- पठन सामग्री तथा व्याख्या NCERT Class 9th Hindi.
वाख- पठन सामग्री तथा व्याख्या NCERT Class 9th Hindi
रस्सी कच्चे धागे की, खींच रही मैं नाव।
जाने कब सुन मेरी पुकार, करें देव भवसागर पार।
पानी टपके कच्चे सकोरे, व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे।
जी में उठती रह-रह हूक, घर जाने की चाह है घेरे।
भावार्थ:- प्रस्तुत पंक्तियों में कवित्री नेताओं की तुलना अपने जिंदगी से करते हुए कहा है कि वे इसे कच्ची डोरी यानी सांसद द्वारा चला रही हैं। वह इस इंतजार में अपनी जिंदगी काट रही है कि कभी प्रभु उनकी पुकार सुन उन्हें इस जिंदगी से पार करेंगे उन्होंने अपने शरीर की तुलना मिट्टी के कच्चे घड़े से करते हुए कहा कि उसे नित्य पानी टपक रहा है यानी प्रत्येक दिन उनकी उम्र कम होती जा रही है। उनके प्रभु-मिलन की व्याकुलता बढ़ती जा रही है। और सफलता प्राप्त होने से उनको गिलानी हो रही है, उन्हें प्रभु की शरण में जाने की चाहत धीरे हुई है।
(2)
खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं,
ना खाकर बनेगा अहंकारी।
सम खा तभी होगा समभावी,
खुलेगी साॅकल बंद द्वार की।
भावार्थ:- इन पंक्तियों में कवित्री ने जीवन में संतुलनता की महत्व को स्पष्ट करते हुए कहा है कि केवल भोग-उपभोग में लिप्त रहने से कुछ किसी को कुछ हासिल नहीं होगा, वह दिन प्रतिदिन स्वार्थी बनता जाएगा। जिस दिन उसने स्वार्थी का त्याग कर त्यागी बन गया तो वह अहंकारी बन जाएगा जिस कारण उसका विनाश हो जाएगा। अगले पंक्ति में कवित्री ने संतुलन पर जो डालते हुए कहा है कि ना तो व्यक्ति को ज्यादा बुक करना चाहिए ना ही त्याग, दोनों को बराबर मात्रा में रखना चाहिए जिससे समभाव उत्पन्न होगा इस कारण हमारे हृदय में उदारता आएगी और हम अपने पराए से उठकर अपने हृदय का द्वार समस्त संसार के लिए खोलेंगे।
(3)
आई सीधी राह से, गई नशीली राह।
सुषुम -सेतु पर खड़ी है, बीत गया दिन आह!
जब टटोली, कौड़ी ना पाई।
माझी को दूॅ , क्या उत्तराई?
भावार्थ:- इन पंक्तियों में कवित्री ने अपने पश्चाताप को उजागर किया है। अपने द्वारा परमात्मा को मिलान के लिए समान भक्ति मार्ग को न अपनाकर हठयोग का सहारा लिया। अर्थात उसने भक्ति रूपी सीढ़ी को ना चढ़कर कुंडलिनी योग को जागृत कर परमात्मा और अपने बीच सीधे तौर पर सेतु बनाना चाहती थी। परंतु अपने इस प्रयास में लगातार असफल होती रही और साथ में आयु भी बढ़ती गई। जब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ तब तक बहुत देर हो चुकी थी और उसकी जीवन की संध्या नजदीक आ गई थी अर्थात उसकी मृत्यु करीब थी। जब उसने अपने जिंदगी का सुलेख जोखा किया तो पाया कि वह बहुत दरिद्र है और उसने अपने जीवन में कुछ सफलता नहीं पाया या कोई पुण्य कर्म नहीं किया और अब उसके पास कुछ करने का समय भी नहीं है। अब तो उसे परमात्मा से मिलान हेतु भक्ति भवसागर के पार ही जाना होगा। पार पाने के लिए परमात्मा जब उससे पार उतर आई के रूप में उसके पुण्य कर्म मांगेंगे तो वह ईश्वर को क्या मुंह दिखाई दी और उन्हें क्या देगी क्योंकि उसने तो अपनी पूरी जिंदगी ही हठयोग मैं बिता दिया। उसने अपनी जिंदगी में ना कोई पुण्य कर्म कमाया और ना ही कोई उदारता दिखाई। अब कवित्री अपने इस अवस्था पर पूर्ण पछतावा हो रहा है पर इससे अब कोई मोल नहीं क्योंकि जो समय एक बार चला जाता है वह वापस नहीं आता। अब पछतावा के अलावा कुछ नहीं कर सकती।
(4)
थल -थल में बसता है शिव ही,
भेद न कर क्या हिंदू- मुसलमान।
ज्ञानी है तो स्वयं को जान,
वही है साहिब से पहचान।।
भावार्थ:- इन पंक्तियों में कवित्री ने बताया है कि ईश्वर कण- कण में व्याप्त हैं, वह सबके हृदय के अंदर मौजूद है। इसलिए हमें किसी व्यक्ति से हिंदू-मुसलमान जानकर भेदभाव नहीं करना चाहिए। अगर कोई ज्ञानी तो उसे स्वयं के अंदर जाकर अपने आप को जानना चाहिए, यही ईश्वर से मिलने का एक मात्र साधन है।
कवि परिचय:-
कश्मीरी भाषा की लोकप्रिय संत-कवित्री ललद्यद का जन्म सन 1320 के लगभग कश्मीरी स्थित पाम्पोर के सीमपुरा गांव में हुआ था। उनके प्रारंभिक जीवन के बारे में ज्यादा जानकारी मौजूद नहीं है। इनका देहांत सन 1391 में हुआ था। इन की काव्य शैली को वाख कहा जाता है।
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